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जटाशंकर सरकारी अफसर था। था नहीं, पर अपने आपको बहुत ज्यादा बुद्धिमान समझता था। उसके मन मस्तिष्क पर यह सुरूर छाया रहता था कि मुझ से ज्यादा चतुर व्यक्ति इस आँफिस में दूसरा नहीं है। वह पारिवारिक रिश्तेदारी के हिसाब से जल्दी ही प्रगति के पथ पर चढता हुआ अफसर बन गया था।