चोटों पे चोट देते ही.. Hindi Poems

चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया
पत्थर को बुत की शक्ल में लाने का शुक्रिया

जागा रहा तो मैंने नए काम कर लिए
नींद आज तेरे आने का शुक्रिया

सूखा पुराना जख्म नए को जगह मिली
स्वागत नए का और पुराने का शुक्रिया

आती तुम तो क्यों मैं बनाता ये सीढ़ियाँ
दीवारों, मेरी राह में आने का शुक्रिया

आँसू-सा माँ की गोद में आकर सिमट गया
नजरों से अपनी मुझको गिराने का शुक्रिया

अब यह हुआ कि दुनिया ही लगती है मुझको घर
यूँ मेरे घर में आग लगाने का शुक्रिया

गम मिलते हैं तो और निखरती है शायरी
यह बात है तो सारे जमाने का शुक्रिया

अब मुझको गए हैं मनाने के सब हुनर
यूँ मुझसे `कुँअररूठ के जाने का शुक्रिया

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.